हरि अवतरे कारागार
Hari Avatare Karagar
हरि अवतरे कारागार ।
दिसि सकल भइँ परम निरमल अभ्र सुखमा-सार ।
लता-बिटप सुपल्लवित पुष्पित नमत फल-भार ।
सुस्वद मंद सुगंध सीतल बहत मलय-बयार ।
देवगन हरखत सुमन बरवत करत जयकार ।।
बिनय करत बिरंचि नारद सिद्ध बिबिध प्रकार ।
करत किंनर गान बहु गंधरव इरख अपार ।!
संख चक्र गदा नवांबुज लसत हैं भुज चार ।
भृगु-लता कौस्तुभ-सुसोभित, कांतिके आगार ।।
नौमि नीरद-नील नव तनु गले मुकता-हार ।
पीत पट राजत, अलक लखि अलिहु करत पुकार ।।
परम बिस्मित देखि दंपति छबिहिं अमित उदार ।
निरखि सुंदरता अपरिमित लजत कोटिन मार ॥