हे दयामय दीनबन्धो दीनको अपनाइये – He Dayamay Dinabandho Dinako Apanaiye
हे दयामय ! दीनबन्धो !! दीनको अपनाइये ।
डूबता बेड़ा मेरा मझधार पार लँधाइये ॥
नाथ ! तुम तो पतितपावन, मैं पतित सबसे बड़ा ।
कीजिये पावन मुझे, मैं शरणमें हूँ आ पड़ा ।।
तुम गरीबनिवाज हो, यों जगत साख कह रहा ।
मैं गरीब अनाथ दुःख-प्रवाहमें नित बह रहा ।।
इस गरीबीसे छुड़ाकर कीजिये मुझको सनाथ ।
तुम सरीखे नाथ पा, फिर क्यों कहाऊँ मैं अनाथ ।।
हो तृषित आकुल अमित प्रभु! चाहता जो बूँद नीर ।
तुम तृषाहारी अनोखे उसे देते सुधा-क्षीर ।।
यह तुम्हारी अमित महिमा सत्य सारी है प्रभो ! ।
किस लिये मैं रहा बंचित फिर अभीतक हे बिभो ! ।।
अब नहीं ऐसा उचित, प्रभु ! कृपा मुझपर कीजिये ।
पापका बन्धन छुड़ा नित-शान्ति मुझको दीजिये ।।