जगतमें स्वारथके सत्र मीत
Jagatmen Svarathake Satra Meet Lyrics
जगतमें स्वारथके सत्र मीत । जबलगि जासौं रहत स्वार्थ कछु, तबलगि तासौं प्रीत।।
मात-पिता जेहि सुतहित निस-दिन, सहत कष्ट-समुदाई। बृद्ध भये स्वारथ जब नास्यो, सोइ सुत मृत्यु मनाई ॥
भोगजोग जबलौं जुवती स्त्री, तबलौं अतिही पियारी । बिधिबस सोइ जर्जाद भई व्याधिवस, तुरत चहत तेहि मारी प्रियतम॥
प्राननाथ कहि कहि जा अतुलित प्रीति दिखाबत सोइ नारी रचि आन पुरुष सँग, पतिकी मृत्यु मनावत ।।
कल नहिं परत मित्र बिनु छिनभर, संग रहे, सँग खाये । बिनस्यं । धन, स्वारथ जब छूट्यो, मुख बतरात लजाये ।।
साँचो सुहृद, अकारन प्रेमी, राम एक जग माँहीं । तेहि सँग जोरहु प्रीति निरंतर, जग कोउ अपनो नाहीं ।।