स्याम मोहिं तुम बिनु कछु न सुहावै
Syam Mohin Tum Binu Kachu Na Suhavai
स्याम मोहिं तुम बिनु कछु न सुहावै ।
जबतें तुम तजि ब्रज, गये मथुरा, हिय उथल्योई आवै ॥
बिरह बिथा सगरे तनु व्यापी, तनिक न चैन लखावै ।
कल नहिं परत निमेष एक मोहि, मन-समुद्र लहरावै ।।
नंद-घर सूनो, मधुबन सूनो, सूनी कुंज जनावै ।
गोठ, बिपिन, जमुना-तट सूनो, हिय सूनो बिलखावै ।।
अति बिह्वल वृषभानुनंदिनी, नैर्नान नीर बहावै ।
सकुच बिहाइ पुकारि कहति सो, स्याम मिलें सुख पावै।।