अरे मन नू कछु सोच बिचार Are Man Noo Kachhu Soch Bichaar 

अरे मन नू कछु सोच बिचार

Are Man Noo Kachhu Soch Bichaar

अरे मन, नू कछु सोच-बिचार । झूठो जग साँचों करि मान्यो, भूल्यो फिरत गँवार ।।

मृग जिमि भूल्यो देखि असत जल, मरु धरनी बिस्तार । सुन्याकास तिरवरा दीखत, मिथ्या नेत्र विकार ||

रसरी देखि सरप जिमि मान्यो, भयबस रह्यो पुकार । सीप माहिं ज्यों भयो रौप्य-भ्रम, तिमि मिथ्या संसार ।।

स्वप्न-दृश्य साँचे करि मानत, नहिं कछु तिनमहँ सार । तिमि यह जग मिथ्या ही भासत, प्रकृति-जनित खिलवार ।।

जो यातें उद्धार चहै तो, हरिमय जगत निहार । मायापतिकी सरन गहे तें, होवे तब निस्तार ।।

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