भवानी अष्टकम्

Bhavani Ashtakam In Hindi

भवानी अष्टकम्(Bhavani Ashtakam) एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जिसे आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र माँ भवानी (दुर्गा) की स्तुति और उनकी कृपा की याचना के लिए लिखा गया है। भवानी अष्टकम् का अर्थ है “माँ भवानी के आठ श्लोकों का स्तोत्र।” यह स्तोत्र न केवल भक्ति से भरपूर है, बल्कि इसमें भक्त के पूर्ण समर्पण और अपने आराध्य देवी के प्रति अडिग श्रद्धा का अद्भुत प्रदर्शन होता है।

भवानी अष्टकम् का महत्त्व Bhavani Ashtakam Importance

भवानी अष्टकम् का पाठ भक्तों को यह याद दिलाता है कि ईश्वर के बिना संसार में हमारा कोई सहारा नहीं है। इसमें मनुष्य की निर्बलता और देवी भवानी की कृपा का महत्व स्पष्ट होता है। भक्त स्वयं को पूरी तरह माँ भवानी के चरणों में समर्पित करते हुए अपनी कमजोरियों, दुखों, और संसार की विपत्तियों से मुक्ति की प्रार्थना करता है।

भवानी अष्टकम् श्लोकों की संरचना

भवानी अष्टकम् के प्रत्येक श्लोक में भक्त यह स्वीकार करता है कि उसके पास कोई अन्य मार्ग नहीं है, कोई दूसरा रक्षक नहीं है। वह यह भी कहता है कि उसे धन, वैभव, परिवार, और अन्य सांसारिक चीजों से कोई आशा नहीं है। उसकी एकमात्र आशा माँ भवानी हैं, जो उसे हर संकट से उबार सकती हैं।

भवानी अष्टकम् का पाठ और लाभ Bhavani Ashtakam Benifits

भवानी अष्टकम् का नित्य पाठ करने से मनुष्य के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह स्तोत्र आत्मसमर्पण और विश्वास की भावना को गहराई से प्रेरित करता है। माँ भवानी की आराधना करने वाले भक्तों का विश्वास है कि इससे सभी प्रकार के कष्ट, भय, और असफलताएँ दूर हो जाती हैं।

भवानी अष्टकम् के श्लोकों का पाठ कैसे करें

  • शुद्ध मन और शुद्ध स्थान पर बैठकर पाठ करना चाहिए।
  • माँ भवानी के चित्र या मूर्ति के समक्ष दीपक जलाकर इस स्तोत्र का पाठ करना लाभकारी होता है।
  • भक्त को श्रद्धा और विश्वास के साथ इन श्लोकों का उच्चारण करना चाहिए।

भवानी अष्टकम् Bhavani Ashtakam

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ १ ॥

भवाब्धावपारे महादुःखभीरु
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ २ ॥

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ३ ॥

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातः
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ४ ॥

कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ५ ॥

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ६ ॥

विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ७ ॥

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः
विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ८ ॥

॥ इति श्रीमदादिशङ्कराचार्यविरचितं भवान्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥

भवानी अष्टकम् से संबंधित 5 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर FAQs Bhavani Ashtakam

  1. भवानी अष्टकम् किसने लिखा है?

    भवानी अष्टकम् आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित है।

  2. भवानी अष्टकम् का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    भवानी अष्टकम् में माता भवानी की भक्ति, समर्पण और उनसे शरण की याचना की गई है। यह भक्त को सांसारिक बंधनों से मुक्त होने की प्रेरणा देता है।

  3. भवानी अष्टकम् में कितने श्लोक हैं?

    भवानी अष्टकम् में कुल 8 श्लोक हैं।

  4. भवानी अष्टकम् का पाठ करने से क्या लाभ होता है?

    भवानी अष्टकम् का पाठ करने से मानसिक शांति, आध्यात्मिक शक्ति, और देवी भवानी की कृपा प्राप्त होती है।

  5. भवानी अष्टकम् का पहला श्लोक क्या है?

    भवानी अष्टकम् का पहला श्लोक है:
    “न तातो न माता न बन्धुर्न दाता, न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
    न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी॥”

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