Bhuvaneshwari Panchakam

Bhuvaneshwari Panchakam

भुवनेश्वरी पंचकम् एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है जो देवी भुवनेश्वरी की स्तुति में रचा गया है। यह स्तोत्र मुख्यतः पाँच श्लोकों (पंचकम्) में विभाजित होता है और प्रत्येक श्लोक में देवी की दिव्य महिमा, शक्ति, कृपा और उनके विश्वरूप का वर्णन किया गया है। देवी भुवनेश्वरी दस महाविद्याओं में एक प्रमुख स्थान रखती हैं और इन्हें संपूर्ण ब्रह्मांड की अधीश्वरी माना जाता है।

भुवनेश्वरी देवी कौन हैं?

देवी भुवनेश्वरी का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है –

  • “भुवन” जिसका अर्थ है त्रिलोक (भू: पृथ्वी, भुव: अंतरिक्ष, स्व: स्वर्ग)
  • “ईश्वरी” अर्थात स्वामिनी या अधिपति

इस प्रकार भुवनेश्वरी का अर्थ हुआ – तीनों लोकों की अधीश्वरी

देवी को सगुण ब्रह्म की स्वरूपिणी माना जाता है, जिनकी कृपा से ब्रह्मांड की सृष्टि, पालन और संहार होता है। ये सृजनात्मक ऊर्जा की अधिष्ठात्री हैं और आदि शक्ति के एक रूप में पूजनीय हैं।

भुवनेश्वरी पंचकम्

प्रातः स्मरामि भुवनासुविशालभालं
माणिक्यमौलिलसितं सुसुधांशुखण्दम्।
मन्दस्मितं सुमधुरं करुणाकटाक्षं
ताम्बूलपूरितमुखं श्रुतिकुन्दले च।

प्रातः स्मरामि भुवनागलशोभिमालां
वक्षःश्रियं ललिततुङ्गपयोधरालीम्।
संविद्घटञ्च दधतीं कमलं कराभ्यां
कञ्जासनां भगवतीं भुवनेश्वरीं ताम्।

प्रातः स्मरामि भुवनापदपारिजातं
रत्नौघनिर्मितघटे घटितास्पदञ्च।
योगञ्च भोगममितं निजसेवकेभ्यो
वाञ्चाऽधिकं किलददानमनन्तपारम्।
प्रातः स्तुवे भुवनपालनकेलिलोलां
ब्रह्मेन्द्रदेवगण- वन्दितपादपीठम्।
बालार्कबिम्बसम- शोणितशोभिताङ्गीं
बिन्द्वात्मिकां कलितकामकलाविलासाम्।

प्रातर्भजामि भुवने तव नाम रूपं
भक्तार्तिनाशनपरं परमामृतञ्च।
ह्रीङ्कारमन्त्रमननी जननी भवानी
भद्रा विभा भयहरी भुवनेश्वरीति।

यः श्लोकपञ्चकमिदं स्मरति प्रभाते
भूतिप्रदं भयहरं भुवनाम्बिकायाः।
तस्मै ददाति भुवना सुतरां प्रसन्ना
सिद्धं मनोः स्वपदपद्मसमाश्रयञ्च।

भुवनेश्वरी पंचकम् का लाभ

  • मनोविकार, भय, चिंता और भ्रम दूर होता है।
  • वाणी, ध्यान और तांत्रिक क्रियाओं में सिद्धि मिलती है।
  • भौतिक व आध्यात्मिक जीवन में संतुलन आता है।
  • देवी भुवनेश्वरी की अनुकम्पा से शुद्ध बुद्धि और परम ज्ञान की प्राप्ति होती है।

भुवनेश्वरी पंचकम् के पाठ की विधि

  • स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल स्नान के पश्चात शांत मन से करें।
  • देवी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक व पुष्प अर्पित कर स्तुति करें।
  • प्रतिदिन या विशेष रूप से नवरात्रि, अष्टमी, या पूर्णिमा पर पाठ करना फलदायक होता है।
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