बिनती सुण म्हारी सुमरो सुखकारी हरिके नामनैं
Binatee Sun Mhaaree Sumaro Sukhakaaree Harike Naamanain
( मारवाड़ी)
बिनती सुण म्हारी, सुमरो सुखकारी हरिके नामनैं ।
भटकत फिरथो जुण चौरासी लाख महा दुखदाई ।
बिन कारण कर दया नाथ फिर मिनख-देह बकसाई।।
गरभमायँ माताके आकर पाया दुःख अनेक ।
अरजी करी प्रभूसे, बाहर काढो, राखो टेक ॥
करी प्रतिग्या गरभमायँ मैं सुमरण करस्यूँ थारो ।
नहीं लगाऊँ मन बिषयाँमैं, प्रभुजी मर्ने उबारो ॥
जलम लेय जगमायँ चित्तनै विषयाँ मायँ लगायो ।
जलम-मरण-दुख-हरण रामको पावन नाम भुलायो ||
खोई उमर ब्रथा भोगाँकै सुख-सुपनेकै माँई ।
सुख नहिं मिल्यो, बढ्यो दुख दिन-दिन, रह्यो सोग मन छाई ।।
मृग-तृस्नाकी धरतीमैं जो समझै भ्रमसैं पाणी ।
उसकी प्यास नहीं मिटणैकी, निश्चै लीज्यो जाणी ॥
यूँ इण संसारी भोगाँमैं नहीं कदे सुख पायो ।
दुःखरूप सुख देवै किस बिध, मूरख मन भरमायो ।।
कर विचार, मन हटा विषयसै प्रभु चरणॉमैं ल्याओ ।
करो कामना त्याग, हरीको नाम प्रेमसैं गाओ ।॥
सुख-दुखमें संतोष करो अब, सगळी इच्छा छोड़ो ।
‘मैं’ और ‘मेरो’ त्याग हरीके रूप माय चित जोड़ो ।।
मिलै सांति, दुख कदे न ब्यापै, आवै आनंद भारी ।
प्रेममगन हो नाम हरीको जपो सदा सुखकारी ॥