चाहता जो परम सुख तू जाप कर हरिनामका
Chaahata Jo Param Sukh Too Jaap Kar Harinaamaka
चाहता जो परम सुख तू, जाप कर हरिनामका ।
परम पावन, परम सुंदर, परम मंगलधामका ।।
लिया जिसने है कभी हरिनाम भय-भ्रम-भूलसे ।
तर गया, वह भी तुरत, बन्धन कटे जड़-मूलसे ||
हैं सभी पातक पुराने घास सूत्रेके समान ।
भस्म करनेको उन्हें हरिनाम है पावक महान ||
सूर्य उगते हो अँधेरा नाश होता है यथा ।
सभी अघ हैं नष्ट होते नामकी स्मृतिसे तथा ॥
जाप करते जो चतुर नर सावधानीसे सदा ।
वे न बँधते भूलकर यमपाश दारुणमें कदा ॥
बात करते, काम करते, बैठते-उठते समय ।
राह चलते नाम लेते विचरते हैं के अभय ॥
साथ मिलकर प्रेमसे हरिनाम करते गान जो ।
मुक्त होते मोहसे कर प्रेम-अमृत पान सो ॥