ढुण्ढिस्वरूप वर्णन स्तोत्रम्

ढुण्ढिस्वरूप वर्णन स्तोत्रम्(Dhundhiswarup Varna Stotram) एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जो भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र जैमिनि ऋषि द्वारा रचित माना जाता है, जिनकी गणना भारत के प्रसिद्ध वेदज्ञ ऋषियों में की जाती है। इस स्तोत्र में भगवान गणेश के दिव्य रूप, उनके स्वरूप और उनकी महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। गणेश जी का प्रमुख स्वरूप ‘ढुण्ढि’ रूप में पूजित है, और यह स्तोत्र उनके इसी रूप की प्रशंसा में लिखा गया है।

स्त्रोत के मुख्य अंश:

ढुण्ढिस्वरूप वर्णन स्तोत्रम् में भगवान गणेश को ढुण्ढि स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है, जो विघ्नों का नाश करने वाले हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने में समर्थ हैं। यह स्तोत्र उनकी शक्ति, करुणा, और दिव्यता को समझाने का एक साधन है। स्तोत्र में गणेश जी के विभिन्न नामों, स्वरूपों और उनके महान कार्यों का उल्लेख है, जो उन्हें समस्त जगत में पूजनीय बनाते हैं।

ढुण्ढि गणेश का महत्त्व:

भगवान गणेश के ढुण्ढि स्वरूप का उल्लेख पुराणों और प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि गणेश जी के इस रूप की आराधना करने से समस्त विघ्न और बाधाएं दूर हो जाती हैं। ढुण्ढि रूप में गणेश जी को विशेष रूप से विघ्नहर्ता और संकटमोचक के रूप में जाना जाता है, जो अपने भक्तों के जीवन से समस्त कष्टों का अंत कर देते हैं।

जैमिनि ऋषि का योगदान:

जैमिनि ऋषि भारतीय दर्शन के प्रमुख ऋषि माने जाते हैं और उनका योगदान वेदों, विशेष रूप से सामवेद, के अध्ययन में महत्वपूर्ण है। उन्होंने विभिन्न धर्मग्रंथों का भी संकलन किया है। ढुण्ढिस्वरूप वर्णन स्तोत्रम् उनकी गणेश भक्ति को दर्शाता है और यह भी प्रमाणित करता है कि गणेश उपासना का महत्व सदियों से चला आ रहा है।

स्तोत्रम् का लाभ:

  1. विघ्नों का नाश: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं।
  2. संकटों से मुक्ति: भगवान गणेश का स्मरण संकटमोचक के रूप में किया जाता है। ढुण्ढि स्वरूप उनकी संकट हरने वाली शक्ति को समर्पित है।
  3. सकारात्मक ऊर्जा: यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता और शांति लाता है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति: इस स्तोत्र के पाठ से मानसिक शांति प्राप्त होती है और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।

पाठ करने की विधि:

ढुण्ढिस्वरूप वर्णन स्तोत्रम् का पाठ प्रातःकाल किया जाता है। इसे विधिपूर्वक गणेश जी के समक्ष दीप जलाकर, शुद्ध मन और शरीर से किया जाता है। इसका पाठ संकटों के समय विशेष रूप से लाभकारी माना गया है।

ढुण्ढिस्वरूप वर्णन स्तोत्रम् – जैमिनिरुवाच Dhundhiswarup Varna Stotram

न वक्तुं शक्त्ये राजन् केनापि तत्स्वरूपकम् ।
नोपाधिना युतं ढुण्ढिं वदामि श्रृणु तत्वतः ॥१॥

अहं पुरा सुशान्त्यर्थं व्यासस्य शरणं गतः ।
मह्यं सङ्कथितं तेन साक्षान्नारायणेन च ॥२॥

तदेव त्वां वदिष्यामि स्वशिष्यं च निबोध मे ।
यदि तं भजसि ह्यद्य सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥३॥

देहदेहिमयं सर्वं गकाराक्षरवाचकम् ।
संयोगायोगरूपं यद् ब्रह्म णकारवाचकम् ॥४॥

तयोः स्वामी गणेशश्च पश्य वेदे महामते ।
चित्ते निवासकत्वाद्वे चिन्तामणिः स कथ्यते ॥५॥

चित्तरूपा स्वयं बुद्धिर्भ्रान्तिरूपा महीपते ।
सिद्धिस्तत्र तयोर्योगे प्रलभ्येत् तयोः पतिः ॥६॥

द्विज उवाच ।

श्रृणु राजन् गणेशस्य स्वरूपं योगदं परम् ।
भुक्तिमुक्तिप्रदं पूर्णं धारितं चेन्नरेण वै ॥७॥

चित्ते चिन्तामणिः साक्षात्पञ्चचित्तप्रचालकः ।
पञ्चवृत्तिनिरोधेन प्राप्यते योगसेवया ॥८॥

असम्प्रज्ञातसंस्थश्च गजशब्दो महामते ।
तदेव मस्तकं यस्य देहः सर्वात्मकोऽभवत् ॥९॥

भ्रान्तिरूपा महामाया सिद्धिर्वामाङ्गसंश्रिता ।
भ्रान्तिधारकरूपा सा बुद्धिश्च दक्षिणाङ्गके ॥१०॥

तयोः स्वामि गणेशश्च मायाभ्यां खेलते सदा ।
सम्भजस्व विधानेन तदा संलभसे नृप ॥११॥

इति ढुण्ढिस्वरूपवर्णनस्तोत्रं समाप्तम् ।

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