जगतमें कोइ नहिं तेरा रे – Jagatamen Koi Nahin Tera Re

जगतमें कोइ नहिं तेरा रे

Jagatamen Koi Nahin Tera Re

 

जगतमें कोइ नहिं तेरा रे ।

छाड वृथा अभिमान त्याग दे मेरा-मेरा रे ॥

काल-करम बस जग-सराय बिच कीन्हा डेरा रे ।

इस सरायमें सभी मुसाफर, रैन बसेरा रे ॥

जिस तनको तू सदा सँवारै, साँझ-सबेरा रे ।

एक दिन मरघट पड़े भसमका होकर देरा रे॥

मात-पिता, भ्राता, सुत-बांधव, नारी-चेरा रे ।

अंत न होय सहाय, काल जब देवै घेरा रे ॥

जंगका सारा भोग सदा कारन दुस्खकेरा रे ।

भज मन इरिका नाम, पार हो भव-जल बेरा रे ।।

दीनदयालु भक्त बत्सल हरि मालिक तेरा रे ।

दीन होय उनके चरनोंमें कर ले डेरा रे ॥

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