मन कछु वा दिनकी सुधि राख | Man Kachhu Va Dinakee Sudhi Raakh

मन कछु वा दिनकी सुधि राख

Man Kachhu Va Dinakee Sudhi Raakh

मन, कछु वा दिनकी सुधि राख । जा दिन तेरे तनु-दुकानकी उठि जैहैं सब साख ।।

इंद्रिय सकल न मानहिं अनुर्मात छोड़ चलें सब साथ सुत, परिवार, नारि नहिं कोऊ पूछें दुखकी गाथ ॥

वारंट लै जमदूत आइ तोहि पकरि बाँधि लै जाय । कोउ न बनै सहाय काल तिहि देखत हो रहि जाम ।।

जमके कारागार नरक मह अतिसय संकट पाय । बार-बार करनी सुमिरन करि सिर धुनि-धुनि पछिताय ।।

जो यहि दुखतें उबरो चाहै, तो हरि-नाम पुकार । राम-नामते मिटैं सकल दुख, मिलै परम सुख-सार ।।

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