स्याम मोरे ढिगतें कबहुँ न जावै | Syam More Dhigaten Kabahun Na Javai

स्याम मोरे ढिगतें कबहुँ न जावै

Syam More Dhigaten Kabahun Na Javai

स्याम मोरे ढिगतें कबहुँ न जावै ।

कहा कहूँ सखि ! गैल न छाड़े, जित जाऊँ तित घावै ।।

गैया दुहत गोद आ बैठे, दूध-धार पी जावै ।

दही मथत नवनी लेबेकौं मटकी माहिं समावै ॥

रोटी करत आइ चौकामैं, ऊधम अमित मचावै ।

जेंवत बेर संग आ बैठै, माल-माल गटकावै ॥

सखियन सँग बतरात आइ सो पंचराज बनि जावै ।

मुरली मधुर बजाय देखु सखि, मोहन हमहिं रिझावै ॥

सोबत समै सेज आ पौदै, गृह-स्वामी बनि जावै ।

स्वलप निंदरिया बीच सपनमहूँ, माधुरि-रूप दिखावै ।।

तदपि न बरजत बनै ताहि सखि, चित्त अति ही सुख पावै

बारहिं बार निहारि चंद्रमुख, अंतर अति हुलसावै ||

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